हरदोई : नगर पालिका बोर्ड की हॉट_सीट आएगी किसके हिस्से?

शिवधीश त्रिपाठी
रीडर टाइम्स न्यूज
भाजपा में है स्वाभाविक ही टिकट चाहने वालों की कतार
प्रत्याशी चयन में होगी नितिन की केन्द्रीय भूमिका, पर चलेगी नरेश की ही भाजपा संगठन के साथ
हरदोई / निकाय चुनाव के लिए अधिसूचना अगले महीने कभी भी जारी हो सकती है। केन्द्र और प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में जाहिर ही सिम्बल के तलबगारों की लम्बी लाइन है। मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी में भी निकाय चुनाव को लेकर सुगबुगाहट है। कांग्रेस के भीतर टिकट की प्रत्याशिता को लेकर उत्साह तिरोहित है .वहीं बसपा निकाय चुनाव में दिलचस्पी नहीं रखती है . लिहाजा प्रत्याशी नहीं उतारती है। लेकिन, बसपा सुप्रीमो ने इस बार निकाय चुनाव में उतरने का संकेत दिया है.अभी तो निकाय अध्यक्ष पद का आरक्षण आना बाकी है। आरक्षण के आधार पर ही दलीय प्रत्याशी तय होंगे। सदर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद के आरक्षण को लेकर आम-फ़हम है कि सीट अनारक्षित रहेगी, या फिर महिला (सामान्य) के लिए आरक्षित होगी। आरक्षण की दोनों ही दशा में भाजपा के भीतर दावेदारों की लम्बी फेहरिस्त है। बात पहले भाजपा की। सदर पालिका अध्यक्ष सुखसागर मिश्रा ‘मधुर’ पिछला यानी 2017 का चुनाव सपा के सिम्बल पर लड़े और जीते थे। उनके सामने सत्तादल भाजपा से जीडीसी छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष पारुल दीक्षित प्रत्याशी थे और करीबी मुकाबले में हारे थे। समय की धारा के साथ लोकसभा चुनाव से पहले मधुर अपने सियासी सरपरस्त नरेश अग्रवाल के साथ भाजपा के हो गए। स्वाभाविक ही मधुर और पारुल भाजपा के सिम्बल के दावेदार हैं। सीट महिला के लिए आरक्षित होने पर मधुर अपनी पुत्रवधू और पारुल अपनी पत्नी के लिए टिकट मांगेंगे। भाजपा स्थानीय निकाय प्रकोष्ठ के जिला संयोजक उमेश अग्रवाल दिग्गज नेता नरेश अग्रवाल के अनुज हैं। एक बार उमेश (2007-12) और एक बार उनकी पत्नी मीना अग्रवाल (2012-17) पालिकाध्यक्ष रह चुके हैं। यह दोनों भी भाजपा के टिकट की आकांक्षा रखते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) रहे रामलाल उमेश के समधी हैं। नरेश अग्रवाल के ही करीबी पूर्व पालिकाध्यक्ष (2002-07) रामप्रकाश शुक्ला भी भाजपा के सिम्बल पर चुनाव में उतरने की चाहत रखते हैं।

सत्तादल के टिकट के लिए दो और नाम जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा अपना योगदान दें जिस समय भाजपा का हरदोई में कोई वजूद नहीं था उस समय भी उन्होंने जी तोड़ मेहनत कर भाजपा से सांसद बनाया भाजपा के पूर्व नगर अध्यक्ष “अनोज मिश्रा” व प्रमुख समाज सेवी “अनूप सिंह मोनू” जोकि क्षत्रिय वर्ग में मजबूत पकड़ रखने वाले सभी जातियों को गठबंधन में जोड़ कर चलने वाले मंत्री की सबसे करीबी युवा नेता भी है,नरेश अग्रवाल के ही एक और करीबी टिंकू त्रिवेदी भी अपने नेता के आशीर्वाद की इच्छा रखते हैं। उद्योग व्यापार संगठन के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष अचल अग्रवाल भी लाइन में हैं। भाजपा जिला उपाध्यक्ष प्रीतेश दीक्षित के नाम की भी सुगबुगाहट है. लेकिन वह पार्टी की रीति-नीति समझते हैं. लिहाजा वह खुलकर कोई संदेश छोड़ने से परहेज कर रहे हैं। मजे की बात यह है कि प्रीतेश के बालसखा सभासद अमित त्रिवेदी रानू भी अध्यक्ष पद के लिए भाजपा के टिकट के तलबगार हैं। प्रीतेश और अमित एक ही वार्ड से आते हैं। अमित अपने वार्ड से एक बार सभासद निर्वाचित हो चुके हैं। अभी वह अपने नेता नरेश अग्रवाल की कृपा से दूसरी बार नामित सभासद हैं। अमित इकलौते सभासद हैं, जिन्होंने कोरोना काल में अपने वार्ड में टीकाकरण शिविर आयोजित कराया और बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीनेशन का लाभ मिला। इन नामों में पारुल को छोड़ कर बाकी सभी नरेश अग्रवाल से जुड़े हैं।

सदर के लोगों में ये एक मजबूत धारणा है कि इस सीट पर प्रत्याशी से लेकर परिणाम तक, वही होगा जो दिग्गज नेता नरेश अग्रवाल चाहेंगे। सो लोग मान रहे हैं कि प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से पेशबंदी किसी की भी हो। ये तय है कि प्रत्याशी चयन में सदर विधायक/आबकारी व मद्य निषेध राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नितिन अग्रवाल की केन्द्रीय भूमिका होगी। नितिन उसी चेहरे को पार्टी के पटल पर ले जाएंगे, जो उनके पिता नरेश अग्रवाल तय करेंगे।

बात विपक्ष की:
विधानसभा में समाजवादी पार्टी भले मुख्य विपक्ष है, लेकिन जिले से उसकी सहभागिता शून्य है। सदर निकाय अध्यक्ष पद के लिए लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय सचिव रहे रामज्ञान गुप्ता पार्टी में लम्बे समय से पेशबंदी के साथ नगर में प्रचार अभियान संचालित किए हैं। जल्दी ही एक नाम अमित बाजपेयी का उभरा है। वह 2019 लोकसभा चुनाव से पहले नरेश अग्रवाल के साथ सपा छोड़ भाजपा में चले गए थे। लेकिन, विधानसभा चुनाव से उन्होंने सपा में वापसी कर ली और उन्हें जिला उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इन दोनों के अलावा कोई और दावेदार फिलहाल नहीं दिख रहा है। कांग्रेस से तो कोई भी प्रत्याशी परिदृश्य में नहीं है। रही बात बसपा की तो लम्बे वक़्त से वह निकाय चुनाव में नहीं उतरती है। हालांकि, बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस बार निकाय चुनाव में उतरने का संकेत दिया है। फिर भी बसपा से अभी किसी का दावा नहीं दिख रहा है।