ग़ज़ल : अच्छे लोगों से हमसरी बेहतर, दोस्तों से ही दोस्ती बेहतर

                                                                                     final gajalअच्छे लोगों से हमसरी  बेहतर,

दोस्तों  से   ही   दोस्ती  बेहतर।

रोज़े  अव्वल से  जानते सब हैं,

हर  अँधेरे  से   रौशनी   बेहतर।

 

नफ़रतों  के  ग़ुबार   उठ  जाएं,

ऐसी बातों से  ख़ामशी  बेहतर।

बंदापरवर  की रहमतें हो सिला,

बस उसी की है  बन्दगी  बेहतर।

 

इस  सियासत  से होंगे वह राज़ी,

जिनको लगती है गन्दगी बेहतर।

ये  तो   मायूसियों   का  नौहा  है,

रौशनी   से   है   तीरगी    बेहतर।

 

‘ मेहदी ‘ आ  बैठा  है  ख़राबे  में,

सोते जिस्मों की  रहबरी  बेहतर।

 

मेहदी अब्बास रिज़वी

  ” मेहदी हललौरी “