ख़ूने जिगर की चिंगारी……..

छोटी-छोटी मासूम बच्चियों पर हो रहे बलात्कार और क़त्ल

की वारदातों पर चन्द अलफ़ाज़ के आंसू।

ख़ुद की ही शाख़ पे खिलती कली जब अपनों से कुम्हला जाये,
तब ख़ूने जिगर आंसू बन कर पलकों पर क्यों न छा जाये।

 

आकाश की आँखें रोती हैं धरती भी लहू का दरिया है,
यह दर्द नहीं इतना आसां जो सब की समझ में आ जाये।

हैवानों के बाज़ारों में इंसान की कोई क़ीमत क्या,
हर एक नज़र भूखी भूखी जिस को पा जाये खा जाये।

 

कुछ साल पाये थे उस ने भी जीना भी समझ न पाई थी,
मासूम नज़र क्या क्या देखे संसार ज़ुल्म जब ढा जाये।

फूलों सा बदन सिन कुछ ही बरस हूरें भी जिस से शरमाती,
होंटों पे तबस्सुम जब उभरे जन्नत से फ़रिश्ता आ जाये।

 

जंगल की घास थी लहराती चिड़ियाँ भी चहकने लगती थीं,
परवाज़ में रक़्स करें तायर जब नग़मा – ए शीरीं गा जाये।

इतनी छोटी इतनी भोली इसमत से वाकिफ़ हो न सकी,
इतनी भी साँसे पा न सकी बिपता अपनी बतला जाये।

 

इस तरह हवस ने नोचा बदन कि रूह सिसक कर ठहर गई,
हर गाह निगाहें उठती रहीं थोड़ा सा सहारा पा जाये।

यह दौरे सियासत अँधा है इसमत पे सियासत होती है,
ज़ालिम की ज़बानों की कोशिश सच को कैसे झुठला जाये।

 

कैसी ये सियासत की गर्मी मज़लूम को मुजरिम कहती है,
शक्लों पर वह काले धब्बे आईना भी शरमा जाये।

अए हिन्द तुम्हारे दामन पर क्यों ख़ून की छींटे उछली हैं,
तहज़ीब की देवी कहती है किस को यह चेहरा दिखलाये।

 

शर्मिंदा ‘ मेहदी ‘ होता है इस दौर में साँसें ले ले कर,
इंसान कहाँ जा कर ढूंढे जो उस की रूह को भा जाये।

RIZVI SIR

मेहदी अब्बास रिज़वी
” मेहदी हल्लौरी “