मेरी ख़्वाहिश है मेरी बात वहां तक पंहुचे,
एक दो मुल्क नहीं सारे जहाँ तक पंहुचे।
कोई मौसम हो कभी रुक न सके उसका सफ़र,
खेत से ले के बहारों को ख़िज़ां तक पंहुंचे।
प्यार की थपकी से नफ़रत को सुलाने के लिए,
रौशनी शम्मा की महफ़िल से यहां तक पंहुचे।
जिस से इंसानों के जज़बात की ख़ुशबू बिखरे,
दिल की आवाज़ कली बन के जुबां तक पंहुचे।
आज धरती ने दुल्हन बन के ये पैग़ाम दिया,
हुस्न के चरचे मेरे आबे रवां तक पंहुचे।
सारे मयख़ानों में मिल्लत की हवा बहती है,
काश यह शेखो बरहमन के बयां तक पंहुचे।
आरज़ू दिल की इशारों से उन्हें भेजा दिया,
मेरी हस्ती तेरे क़दमों के निशां तक पंहुचे।
नक़्स न ढूंढो मेरा इश्क़ मुकम्मल है सनम,
काश यह बात तेरे वहमों गुमां तक पंहुचे।
जल्द छिप जाओ कहीं तुम भी ज़रा अए ‘मेहदी’
तीर तरकश से निकल कर न कमां तक पंहुचे।