डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पर्व माने जानेवाले गणेशोत्सव की शुरुआत भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से होती है. 11वें दिन अनंत चतुर्दशी को गणेशजी प्रतिमा के विसर्जन के साथ इस महोत्सव की इतिश्री होती है. परंपरानुसार गणेश प्रतिमा-विसर्जन की शुरुआत गणेशोत्सव के अगले दिन यानी पंचमी से होती है. इस डेढ़ दिन के बाद 3सरे दिन, 5वें दिन, 7वें दिन, 9वें दिन और 11वें दिन यानी अमावस्या तक प्रतिमाओं का विसर्जन होने लगता है. किसके घर कितने दिन गणपति स्थापित होंगे, यह भक्त की सेवा-सामर्थ्य पर निर्भर करता है.
मान्यता है कि इन दिनों गणेश-दर्शन से भक्तों के सारे कष्ट दूर होते हैं. लेकिन जिस श्रद्धा एवं विधि-विधान से गणपति प्रतिमा स्थापित की जाती है, उसी विधि-विधान से उनका विसर्जन भी करते हैं. इस दिन जानें-अनजान ऐसी कोई गल्ती नहीं करें कि आपकी पूजा निरर्थक हो. आइये जानें विसर्जन के समय किन किन गल्तियों से बचना चाहिए.
सर्वप्रथम ध्यान रखें कि प्रतिमा का विसर्जन खुशी-खुशी गाजे-बाजे के साथ करें, इस विश्वास के साथ कि अगले बरस फिर बप्पा आपके घर बिराजेंगे.
* घर पर प्लास्टर ऑफ पेरिस अथवा ऐसी किसी भी चीज से बनी मूर्ति नहीं लानी चाहिए जो पानी में घुलनशील नहीं हो. यह पर्यावरण के लिए नुकसानदेह होता है, साथ ही घुलनशील नहीं होने से विसर्जित की जा चुकी गणेश प्रतिमाओं का दुरुपयोग होता है.
* विसर्जन करते समय काले रंग अथवा नीले रंग का वस्त्र हरगिज नहीं पहनें. यह नकारात्मकता का प्रतीक होता है. कोशिश करें लाल अथवा पीले रंग का वस्त्र धारण कर विसर्जन में शामिल हों.
* विसर्जन के समय सभी पर गणपति बप्पा की कृपा बरसती है, इसलिए किसी पर क्रोध अथवा आक्रामकता का भाव नहीं रखें.
* सभी से मीठी वाणी में सम्मान के साथ बात व्यवहार करें. कहते हैं इससे गणपति बप्पा प्रसन्न होते हैं.
* प्रतिमा का विसर्जन करते समय शास्त्रानुसार गणपति बप्पा की जय-जयकार के साथ ‘गणपति बप्पा मोरया अगल बरस तू जल्दी आ’ का उद्घोष भी जरूर करना चाहिए. आपके मन में अपने प्रति भक्ति भाव पर बप्पा प्रसन्न होते हैं.
* गणेश चतुर्थी पर मूर्ति स्थापना से लेकर विसर्जन तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए मन में सात्विक विचार रखना चाहिए.
* गणेश पूजा से लेकर विसर्जन तक भोग में तुलसी दल या विल्व पत्र नहीं रखना चाहिए. उन्हें दूर्वा ही चढ़ाना चाहिए.
“गणेशोत्सव पर हमेशा नई मूर्ति लानी चाहिए. इसके बाद शास्त्रानुसार उनका विसर्जन करना आवश्यक होता है. कभी भी दो मूर्तियों की एक साथ पूजा नहीं करनी चाहिए. पंडालों में दो प्रतिमाएं होती हैं. लेकिन प्राण प्रतिष्ठा एक ही मूर्ति की की जाती है.”