बड़ी जंग के लिए छोटी कुर्बानी देनी ही पड़ती है : बोले- स्वामी प्रसाद मौर्य ,

संवाददाता सूरज तिवारी
रीडर टाइम्स न्यूज़
बसपा से भाजपा सपा में आए स्वामी प्रसाद मौर्य सियासी सुर्खियों में हैं। संघमित्रा खुद अपने बारे में फैसला लेंगी। हमने किसी को इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा। वे सपा में आ गए, मगर उनकी सांसद बेटी संघमित्रा भाजपा में ही हैं। वे कहां से लड़ेंगे, अभी इसकी घोषणा नहीं हुई है। सपा से बेटे को ऊंचाहार से टिकट मिलने की चर्चा थी, मगर मिला नहीं। प्रतापगढ़ में जन्मे और पडरौना को कर्मभूमि बनाने वाले स्वामी प्रसाद कहते हैं कि बड़ी जंग जीतने के लिए छोटी-छोटी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं। वे कहते हैं, जिस दल के साथ रहते हैं, सरकार उसकी ही बनती है, जिसका साथ छोड़ते हैं, वह सियासी तौर पर तबाह हो जाता है। स्वामी प्रसाद मौर्य से वर्तमान सियासी हालात पर चंद्रभान यादव ने की विशेष बातचीत।

– आपके साथ आए कुछ नेताओं को टिकट मिला, कई को नहीं मिला। क्या वजह रही?
हमारे साथ जो भी आया है, वह संविधान बचाने और भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए आया है। टिकट या चुनाव लड़ने की बात छोटी है। बड़ी लडाई लड़ने के छोटी-छोटी कुर्बानी देनी पड़ती है। समाजवादी लोग कुर्बानी देने में पीछे नहीं रहते हैं। हम और हमारे साथ के लोग हर कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं। हमारा सिर्फ एक मकसद है भाजपा को सत्ता से हटाना और समाजवादी सरकार बनाना।

– फिर उनके भविष्य का क्या होगा जिन्होंने आपके कहने पर विधायक पद से इस्तीफा दिया है?
जो भी लोग इस्तीफा दिए हैं, वे स्वेच्छा से दिए हैं। हमने किसी को इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा था। हमारे साथ इतनी बड़ी संख्या में विधायकों का आना साबित करता है कि लोग भाजपा राज से परेशान हैं और मुझ पर भरोसा करते हैं। मैंने जो भी निर्णय लिया, उसमें उनकी सहमति है। यह भी सही है कि निरंतर साथ रहने वालों के मान-सम्मान पर कभी आंच नहीं आने देंगे।

– पडरौना आपकी कर्मभूमि है। अब आरपीएन सिंह भाजपा में आ चुके हैं। ऐसे में क्या पडरौना से चुनाव लड़ेंगे?
पडरौना का हर कार्यकर्ता अपने आप में स्वामी प्रसाद है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का आदेश मिला तो चुनाव जरूर लड़ेंगे। आरपीएन सिंह पहले राजा हैं, बाद में उम्मीदवार होंगे। पडरौना की जनता राजतंत्र से मुक्ति चाहती है। यहां से कोई भी उम्मीदवार भाजपा को हराने में कामयाब होगा।

– सपा में आने के बाद माना जा रहा था कि आपके बेटे को टिकट मिलना तय है। क्या वजह है कि टिकट नहीं मिला?
सपा में शामिल होते वक्त कोई शर्त नहीं रखी थी। बेटे के टिकट को लेकर भी कोई बात नहीं हुई है। खुद के चुनाव लड़ने के फैसले को भी सपा अध्यक्ष पर छोड़ दिया है। ऊंचाहार से मनोज पांडेय विधायक हैं। टिकट वितरण के समय विधायक को टिकट देना पहली प्राथमिकता होती है। यही नैसर्गिक न्याय है। मेरे हर साथी कार्यप्रणाली को जानते हैं। मैंने राजनीति की शुरुआत नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के सान्नध्य में शुरू की है। उनका हर दांव सीखा है। अखिलेश के साथ मिलकर नेताजी के सपने को साकार करेंगे।

– आपकी गाड़ी बसपा से वाया भाजपा होते हुई सपा में पहुंची है। आप पर दलबदलू का आरोप लग रहा है?
हम बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के अनुयायी हैं। संविधान से ही हमें और हमारे पिछड़े, दलित समाज को सम्मान और अधिकार मिला है। जो भी दल संविधान की अनदेखी और उसे खत्म करने का षड्यंत्र रचेगा, उसका विरोध करेंगे। संविधान बचाने के लिए दलबदलू या अन्य कोई भी आरोप झेलने के लिए तैयार हैं।

– तो क्या आपकी बेटी संघमित्रा भाजपा में ही रहेंगी? आपने संघमित्रा की एक तस्वीर मुलायम सिंह के साथ शेयर की थी। इसके क्या मायने हैं?
संघमित्रा सांसद हैं। उन्हें जनता ने चुनकर भेजा है। वह खुद फैसले लेने में सक्षम है। वह अपने क्षेत्र की जनता से राय लेकर फैसला लेंगी। जहां तक नेताजी के साथ तस्वीर का सवाल है तो उनके साथ संघमित्रा की फोटो होना गौरव की बात है। खुद से बड़े लोगों का आशीर्वाद लेना हमारे संस्कार में है। नेताजी के नेतृत्व में ही पिछड़ों , दलितों को हक मिला है।

– आपको बसपा प्रमुख मायावती का खास सिपहसालार माना जाता था। फिर वहां किस बात पर ठन गई?
बसपा प्रमुख ने जब तक दलितों, पिछड़ों का साथ दिया, हम उनके साथ रहे। बाद का दौर ऐसा आया कि वह कुछ लोगों के हाथ का खिलौना बन गईं। जिन संकल्पों को लेकर आगे बढ़े, उसके विपरीत चलने लगीं। ऐसे में अलग होना पड़ा।

– फिर भाजपा में क्या सोच कर गए थे?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुना। वे पिछड़ों की बात कर रहे थे। खुद को पिछड़ा बता रहा थे और पिछड़ों व दलितों के उत्थान का सपना दिखा रहे थे। लेकिन वहां जाने के बाद लगा कि चाल और चरित्र नहीं बदला है। चिकित्सा संस्थानों की भर्ती को लेकर कैबिनेट प्रस्ताव लाई। इसकें दलितों व पिछड़ों का बैकलॉग किनारे कर दिया गया था। संविधान की अनदेखी कर, नियमों को ताक पर रखकर बिना आवेदन मांगे ही भर्ती करने की तैयारी थी। विरोध किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी माना कि हमारा विरोध सही है। बाद में फिर भर्ती करने का प्रयास किया गया। इसी तरह दूसरे विभागों में भी मनमानी तरीके से भर्ती की जाने लगी। नियमावली की अनदेखी होने लगी। इससे हमारा मन बेहद खिन्न हुआ और हमने भाजपा को सबक सिखाने का फैसला लिया।