खाटू श्याम बाबा का भजन कीर्तन हुआ सम्पन

संवाददाता श्याम जी गुप्ता
रीडर टाइम्स न्यूज़
भजन कीर्तन से झूम उठा नवदुर्गा पंडाल
शाहाबाद / हरदोई / शाहाबाद छेत्र के मोहल्ला दिलेरगंज में खाटू नरेश के कीर्तन में सारे भक्त झूम झूम कर नाचने लगे आपके बताते चले कि कौरव वंश के राजा दुर्योधन नेनिर्दोष पाण्डवों को सताने और उन्हें मारने के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया था, पर सौभाग्यवश वे उसमें से बच निकले और वनवास में रहने लगे। एक समय जब वे वन में सो रहे थे उस स्थान के पास ही एक हिडम्ब नामक राक्षस अपनी बहन हिडिम्बी सहित रहता था। तब उनको मनुष्य (पाण्डवों) की गंध आई तो उन्हें देखकर यह राक्षस अपनी बहन से बोला इन मनुष्यों को मारकर मेरे पास ले आओ। अपने भाई के आदेश से वह वहां आई जहां पास ही सभी भाई द्रोपदी सहित सो रहे थे। और भीम उनकी रक्षा में जग रहा था। भीम के स्वरूप को देखकर हिडिम्बी उस पर मोहित हो गयी और मन में यह सोचने लगी मेरे लिए उपयुक्त पति यही हो सकता है। उसने भाई की परवाह किए बिना भीम को पति मान लिया। कुछ देर बाद हिडिम्बी के वापस न लौटने पर हिडिम्बासुर वहां आया और स्त्री के सुन्दर भेष में अपनी बहन को भीम से बात करता देख क्रोधित हुआ। तत्पश्चात हिडिम्बी के अनुनय विनय से माता कुन्ती व युधिष्ठिर के निर्णय से दोनों का गन्धर्व विवाह हुआ। उपरोक्त अवधि के अन्तर्गत हिडिम्बी गर्भवती हुई और एक महाबलवान पुत्र को जन्म दिया। बाल रहित होने से बालक का नाम घटोत्कच रखा गया। हिडिम्बा ने कहा कि मेरा भीम के साथ रहने का समय समाप्त हो गया है और आवश्यकता होने पर पुन: मिलने के लिए कह वह अपने अभिष्टान स्थान पर चली गई। साथ ही घटोत्कच भी सभी को प्रणाम कर आज्ञा लेकर उतर दिशा की ओर चला गया।

फिर जल्द ही कृष्ण के कहने पर मणिपुर में मुरदेत्य की लडक़ी कामकंटका से गन्धर्व विवाह हुआ। व कुछ समय व्यतीत होने के पश्चात उन्हें महान पराक्रमी पुत्र को जन्म दिया जिसके शेर की भांति सुन्दर केशों को देखकर उसका नाम बर्बरीक रखा। बल की प्राप्ति के लिए उसने देवियों की निरन्तर आराधना कर तीनों लोको में किसी में ऐसा दुर्लभ अतुलनीय बल का वरदान पाया। देवियों ने बर्बरीक को कुछ समय वहीं निवास करने के लिए कहा और कहा कि एक विजय नामक ब्राह्मण आएंगे। उनके संग में तुम्हारा और अधिक कल्याण होगा। आज्ञानुसार बर्बरीक वहां रहने लगा। तब मगध देश के विजयी नामक ब्राह्मण वहां आये और सात शिव्लिंगों की पूजा की साथ ही विद्या की सफलता के लिए देवियों की पूजा की। ब्राह्मण को स्वप्न में आकर कहा कि सिद्घ माता के सामने आंगन में साधना करो बर्बरीक तुम्हारी सहायता करेगा। ब्राह्मण के आदेश से बर्बरीक ने साधना में विघ्न डालने वाले सभी राक्षसों को यमलोक भेज दिया। उन असुरों को मारने पर नागों के राजा वांसुकि वहां आए और बर्बरीक को दान मांगने के लिये कहा। तब बर्बरीक ने विजय की निर्विघ्न तपस्या सफल हो यही वर मांगा। ब्राह्मण की तपस्या सफल होने पर उसने बर्बरीक को युद्घ में विजयी होने का वरदान दिया। तत्पश्चात विजय को देवताओं ने सिद्घश्चर्य प्रदान किया तब से उनका नाम सिद्घसेन हो गया। कुछ काल बीत जाने के बाद कुरूक्षेत्र मैदान में कौरवों और पाण्डवों के बीच में युद्घ की तैयारियां होने लगी। इस अवसर पर बर्बरीक भी अपने तेज नीले घोड़े पर सवार होकर आ रहे थे।

तब रास्ते में ही भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक की परीक्षा लेने के लिए ब्राह्मïण के भेष में उसके पास पहुंचे। भगवान ने बर्बरीक की मन की बात जानने के लिए उससे पूछा कि तुम किसकी और से युद्घ लडऩे आए हो तब बर्बरीक ने कहा कि जो कमजोर पक्ष होगा उसकी ओर से युद्ध में लडूंगा। भगवान ने बर्बरीक से कहा कि तुम तीन बाणों से सारी सेना को कैसे नष्टï कर सकते हो? तब बर्बरीक ने कहा कि सामने वाले पीपल वृक्ष के सभी पत्ते एक बाण से ही निशान हो जाए और दूसरा उसे बेध देगा। कृष्ण ने मुट्ठी व पैर के नीचे दो पत्ते छिपा लिए पर देखते ही एक बाण से क्षण भर में सब पत्ते बिंध गए तब श्री कृष्ण ने देखा वास्तव में यह एक ही बार में सबको यमलोक भेज सकता है। तब ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से याचना की तब बर्बरीक ने कहा हे! ब्राह्मण क्या चाहते हो तब श्रीकृष्ण ने कहा कि क्या सबूत है जो मैं मांगूगा वह मुझे मिल जायेगा। तब बर्बरीक ने कहा जब वचन की बात की है तो तुम प्राण भी मांगोगे तो मिल जायेंगे। तो ब्राह्मण के भेष में नटवर बोले मुझे तुम्हारा शीश का दान चाहिए। यह सुनकर बर्बरीक स्तब्ध रह गए और बोले मैं अपना वचन सहर्ष पूरा करूंगा पर सत्य कहो आप कौन हो तब कृष्ण ने अपना विराट स्वरूप बताते हुए कहा कि मैंने यह सोचा कि यदि तुम युद्घ में भाग लोगे तो दोनों कुल पूर्णतया नष्ट हो जाएंगे।

तब बर्बरीक ने कहा कि आप मेरा शीश का दान तो ले लीजिए पर मेरी एक इच्छा है कि मैं युद्घ को आखिर तक देख सकूं। तब भगवान ने कहा कि तुम्हारी यह इच्छा पूरी होगी तब बर्बरीक ने अपना शीश धड़ से काटकर दे दिया। शीश को अमृत जडिय़ों के सहारे पहाड़ के ऊंचे शिखर पीपल वृक्ष पर स्थापित कर दिया। 18 दिन तक चले युद्घ में पाण्डवों को विजय प्राप्त हुई साथ ही उन्हें अपनी जीत पर घमण्ड हो गया, तब कृष्ण उन सबको लेकर वहां पहुंचे जहां बर्बरीक का सिर स्थापित था। बर्बरीक के सामने पाण्डव अपनी-अपनी वीरता का बखान करने लग गए। तब बर्बरीक के सिर ने कहा कि आप सबका घमण्ड करना व्यर्थ है। जीत श्री कृष्ण की नितिज्ञ से ही मिली है। मुझे तो इस युद्घ में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र ही चलता नजर आया था इसके बाद बर्बरीक चुप हो गए और आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। तब भगवान कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे और तुम्हारे सुमरण से सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।