अविवाहित को भी गर्भपात का अधिकार : सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला ,

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में साफ किया है कि सभी महिलाओं को सुरक्षित कानून सम्मत तरीके से गर्भपात का अधिकार है. सिर्फ विवाहित ही नहीं, अविवाहित महिलाये भी 24 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती है. यानी अब लिव-इन रिलेशनशिप और सहमति से बने संबंधों से गर्भवती हुई महिलाएं भी अबॉर्शन करा सकेगी. आज सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 3-B की व्याख्या की है. कोर्ट ने साफ किया संसोधन के बाद ये क़ानून केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित नहीं है. इससे पहले सामान्य मामलों में 20 हफ्ते से अधिक और 24 हफ्ते से कम के गर्भ के एबॉर्शन का अधिकार अब तक विवाहित महिलाओं को ही था.

SC में मामला कैसे पहुंचा?
सुप्रीम कोर्ट में ये मामला 25 साल की महिला की याचिका के जरिये आया. इस महिला ने 23 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत मांगी थी. महिला का कहना था कि वो आपसी सहमति से गर्भवती हुई है लेकिन वह बच्चे को जन्म नहीं देनी चाहती क्योंकि उसके पार्टनर ने शादी से इंकार कर दिया है. लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने इस साल 16 जुलाई को याचिका ये कहते हुए खारिज कर दी थी कि याचिकाकर्ता अविवाहित है और वह सहमति से गर्भवती हुई है. ये मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत किसी भी प्रावधान में नहीं आता है. इसके बाद लड़की ने राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. सुप्रीम कोर्ट ने21 जुलाई को दिए अंतरिम आदेश में महिला को राहत देते हुए गर्भपात की इजाज़त दे दी लेकिन इस कानून की व्याख्या से जुड़े पहलुओं पर सुनवाई जारी रखी. आज इस पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा और ऐतिहासिक फैसला आया है.

मैरिटल रेप पीड़ित भी गर्भपात करा सकेगी:
इसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम व्यवस्था दी है. कोर्ट ने साफ किया है कि अगर बिना मर्जी के बने संबंधों के चलते कोई विवाहित महिला गर्भवती होती है, तो इसे भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत रेप माना जाना जाएगा. यानी की इस लिहाज से उसे भी अबॉर्शन कराने का अधिकार होगा.