जानें क्‍यों इतना महत्‍वपूर्ण है गंगा स्‍नान और दीपदान

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़
दिपावली के ठीक 15 दिन बाद देव दीपावली या देव दिवाली मनाई जाती है. कार्तिक पूर्णिमा का यह पर्व देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन वाराणसी में यह पर्व बहुत ही खास होता है. दरअसल, देव दीपावली पर गंगा समेत पवित्र नदियों में स्‍नान करने और दीपदान करने का बड़ा महत्‍व है. इस दिन गंगा नदी में स्‍नान करने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. वैसे तो यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा पर मनाया जाता है लेकिन कल 8 नवंबर को चंद्र ग्रहण होने के कारण यह आज 7 नवंबर को मनाया जा रहा है.

देवी-देवता आते हैं काशी के गंगा घाट:
मान्‍यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवी-देवता दीपावली मनाने के लिए काशी के गंगा घाट पर आते हैं. इसलिए इस दिन गंगा स्‍नान करना और दीपदान करने से सभी देवी-देवताओं की कृपा होती है. जीवन में अपार सौभाग्‍य और सुख-समृद्धि आती है.

देव दिवाली पर दीपदान का महत्व:
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी के जल से स्नान करके दीपदान जरूर करना चाहिए. दीपदान से मतलब है कि पवित्र नदी में दीप प्रवाहित करना. देव दिवाली के दिन दीपदान करने से जीवन में सुख-संपन्नता बढ़ती है. वाराणसी में देव दिवाली मनाने के लिए, गंगा स्‍नान करने और दीपदान करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. दीपदान करने के लिए प्रदोष काल का समय सबसे शुभ माना जाता है. इस साल देव दिवाली पर दीपदान करने का सबसे शुभ मुहूर्त 7 नवंबर, सोमवार की शाम 05:14 बजे से 07:49 बजे तक है.

इसलिए मनाई जाती है देव दिवाली:
पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था. त्रिपुरासुर के वध की खुशी में देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाए थे. इसलिए हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर काशी में दिवाली मनाई जाती है. चूंकि ये दीवाली देवों ने मनाई थी, इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है. साथ ही इस पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं. मान्‍यता है कि इस दिन शिव जी की विशेष पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.