ग़ज़ल …….

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है    मस्त     हवाओं    का    अंदाज़    जुदागाना,
अंजाम       जुदागाना      आग़ाज़      जुदागाना।
सय्याद  के   पिंजरे   में  कब  इश्क़   हुआ  पस्पा,
होती    है   ख़यालों    की    परवाज़    जुदागाना।
फूलो  को   मसलते   हैं   काँटों  को   हैं  सहलाते,
इस    दौर   के     होते    हैं   जांबाज़   जुदागाना।
जो  सच पे  ही जीते  हैं और सच  पे ही  मरते है।
उन   में   ही    झलकता  है   एजाज़   जुदागाना।
क़ातिल को कहूँ ज़ालिम काफ़िर की सनद मिलती,
हर    बात    पे   मिलता   है   एज़ाज़   जुदागाना।
नफ़रत   के   तरानों   को  अब  सुर  में  पिरोते  हैं, 
बिन   साज़   ही    उभरी   है  आवाज़  जुदागाना।
मानी  की  स्याही  सब  ‘ मेहदी ‘  को   ख़बर  देती,
क़ातिल   के   सदा    होते   अलफ़ाज़   जुदागाना।
मेहदी अब्बास रिज़वी
  ” मेहदी हललौरी “
एजाज़ – चमत्कार
एज़ाज़ – सम्मान