कल तलक जो ख़्वाब था अब वह हक़ीक़त बन गई
Dec 24, 2018
कल तलक जो ख़्वाब था अब वह हक़ीक़त बन गई,
जिस से था ना आशना वह शय ज़रुरत बन गई।
मेरी तनहाई के दर पर हलकी सी दस्तक हुई,
आरज़ू जो सो चुकी थी फिर हक़ीक़त बन गई।
पतझड़ों की गोद में पलता रहा अरसे से मैं,
इक किरन आई झरोखे में जो चाहत बन गई।
मेरी चाहत कुछ नहीं जो उस की चाहत न मिले,
चाहतें मिल जाएं तो समझो मोहब्बत मिल गई।

नफ़रतों के दौर में गुलशन में कलियां क्यों खिलें,
जब की खिलना और महकना एक आफ़त बन गई।
दूर से आवाज़ आती है चलो अब साथ साथ,
बा ख़ुदा आवाज़ ही दुनियां की दौलत बन गई।
‘ मेहदी ‘ की आवाज़ में आवाज़ उस की जो मिली,
चन्द लम्हों को सही पर प्यारी रहमत बन गई।
मेहदी अब्बास रिज़वी
” मेहदी हाल्लौरी “