ग़ज़ल……..परदेस वाले करते हैं सस्ते कफ़न की बात

gazal final

मुश्किल से अब तो होती चमन में चमन की बात,

महफ़िल  में सिर्फ़  गूंजती चरख़े कोहन की बात।

 

सड़कों   पे  नँगी  लाशों  की  है  भीड़  सी  जमा,

परदेस  वाले  करते  हैं   सस्ते  कफ़न  की   बात।

 

बातें   हमारे    होंटों    पे    दम   तोड़   चुकी   हैं,

हर कोई सुना जाता  है  बस  अपने मन की बात।

 

किस्से   कहानी   कानों   की   ज़ीनत   बने   हुए,

आंसू  में  ढल  के बह गई  ज़िंदा  ज़हन की बात।

 

जिस ने  ज़मीं  को  छोड़  ख़ला  को  बसा लिया,

वह  कर  रहा  परिंदों  से  प्यारे  वतन  की  बात।

 

अपने   वजूद   से   भी   नहीं   बाख़बर  हैं  हम,

है  और   बात  करते  ज़मीनों  ज़मन  की  बात।

 

‘ मेहदी ‘  के  होंठ  कांपते  अलफ़ाज़  हैं   सहमे,

अपनों  में  घुट के  रह गई  अपने दहन की बात।

 

मेहदी अब्बास रिज़वी

  ” मेहदी हललौरी “

चरख़े कोहन — पुराना आसमान

ज़मन — ज़माना

दहन — होंठ