राफेल डील : केंद्र सरकार ने राफेल की जानकारी पर अपना जवाब सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपा

राफेल-विमान

नई दिल्ली :- सरकार ने बताया कि राफेल विमान खरीदने का फैसला सालभर में 74 बैठकों के बाद किया गया। दस्तावेजों में कहा गया कि 126 राफेल खरीदने के लिए जनवरी 2012 में ही फ्रांस की दैसो एविएशन को चुन लिया गया था। लेकिन, दैसो और एचएएल के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाने से ये सौदा आगे नहीं बढ़ पाया। सरकार ने कहा कि एचएएल को राफेल बनाने के लिए दैसो से 2.7 गुना ज्यादा वक्त चाहिए था। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने राफेल विमानों की कीमतों के बारे में मांगी गई जानकारी पर अपना जवाब भी सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दिया।

 

 

केंद्र सरकार की ओर से याचिकाकर्ताओं को सौंपे गए दस्तावेजों में कहा गया है कि राफेल की खरीद में सभी प्रकियाओं का पालन किया गया। सरकार ने बताया कि इस प्रक्रिया के लिए फ्रांस सरकार से करीब एक साल तक बात चली। सरकार ने दस्तावेजों में यह भी कहा कि कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यॉरिटी (सीसीएस) से अनुमति लेने के बाद समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस दस्तावेज का शीर्षक ’36 राफेल विमानों की खरीद में फैसले लेने की प्रक्रिया की विस्तार से जानकारी’ है।

 

 

केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार का कोई रोल नहीं है। नियमों के मुताबिक विदेशी निर्माता किसी भी भारतीय कंपनी को बतौर ऑफसेट पार्टनर चुनने के लिए स्वतंत्र है। यूपीए के जमाने से चली आ रही रक्षा उपकरणों की खरीद प्रकिया के लिए रक्षा खरीद प्रक्रिया 2013 का ही पालन किया गया है।

 

 

36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए, रक्षा खरीद प्रक्रिया-2013 में निर्धारित मानकों का पालन किया गया है। दस्तावेज में कहा गया है कि रक्षा खरीद प्रक्रिया में निर्धारित दिशानिर्देशों का पूरी तरह पालन किया गया है और विमान के लिये रक्षा अधिग्रहण परिषद की मंजूरी भी ली गयी।

 

 

इस संबंध में बातचीत के लिये भारतीय वार्ताकार दल का गठन किया गया जिसने करीब एक साल तक फ्रांस के साथ बातचीत की और अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले सक्षम वित्तीय प्राधिकार मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति की मंजूरी भी ली गयी। शीर्ष अदालत के 31 अक्टूबर के आदेश के अनुसार ही यह दस्तावेज याचिकाकर्ताओं को सौंपा गया।

 

 

अपने आदेश में शीर्ष अदालत ने कहा था कि इन विमानों की खरीद के लिये निर्णय लेने की प्रक्रिया में उठाये गये कदमों सहित सारा विवरण, जिसे वैध तरीके से सार्वजनिक दायरे में लाया जा सकता है, इस मामले में याचिका दायर करने वाले पक्षों को उपलब्ध कराया जाये। न्यायालय ने केंद्र से यह भी कहा था कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों को फ्रांस से खरीदने की कीमतों का विवरण भी दस दिन के भीतर सीलबंद लिफाफे में उसके समक्ष पेश किया जाये।

 

 

शीर्ष अदालत ने केंद्र से स्पष्ट कहा था कि यदि कीमतों का विवरण ‘विशेष’ है और इसे न्यायालय के साथ साझा नहीं किया जा सकता तो केंद्र को यह जानकारी देते हुये, इस बारे में हलफनामा दाखिल करना चाहिए। न्यायालय ने इस मामले को 14 नवंबर के लिये सूचीबद्ध कर रखा है।

 

 

राफेल सौदे की जांच के लिये अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और फिर अधिवक्ता विनीत ढांडा ने याचिकाएं दायर कीं। इसके बाद, आप पार्टी के सांसद संजय सिंह ने अलग याचिका दायर की। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी इस मामले में एक संयुक्त याचिका दायर की है।