ग़ज़ल : प्यारी – प्यारी सी अदा हाथ में ख़ंजर देखा

hath me khanjar

इश्क़ की गलियों में वहशत भरा मंज़र देखा,

प्यारी प्यारी सी अदा  हाथ  में ख़ंजर  देखा।

बज़्म  में  जा के कभी चेहरा अगर पढता हूँ,

होंठ  पर  ज़ह्र  सजा आंख  में  नश्तर देखा।

बेटियां हैं नहीं  महफ़ूज़  भला  जाएँ  किधर,

लूटने  वालों  का हर  मोड़  पे लश्कर  देखा।

भूखे बच्चों की तड़प देख के माँ क्या करती,

ओढ़े  रुसवाईयाँ जलता  हुआ बिस्तर देखा।

आंसू  बरबाद  हुए  जाते  हैं क़ीमत के बग़ैर,

सुबह से शाम तलक आँखों में भर भर देखा।

लोग   आएँ   गे  जनाज़ा   मेरा  ले  जाएं  गे,

आरज़ू  उभरी तो इस शौक़ में मर कर देखा।

हाय  वह  तुन्द  हवाएं  वो बिखरता गुलशन,

टूटती   शाखों  पे  मुरझाते   गुले  तर  देखा।

नातवां   जिस्म  लिए  जाते  हैं  मयख़ाने  में,

दो  घड़ी  ही  सही  पर प्यार  भरा घर देखा।

गाँव और शह्र  में  इक उम्र बिता  कर आया,

तब  ब्याबान  में  ‘ मेहदी ‘  ने  मुक़द्दर  देखा।

मेहदी अब्बास रिज़वी

   ” मेहदी हल्लौरी “