उत्तर प्रदेश की सियासत में फिर उपजा ब्राह्मण प्रेम

डेस्क रीडर टाइम्स न्यूज़

1- चुनावों में किंग मेकर की भूमिका में रहता है ब्राह्मण वोटर
2- ब्राह्मणों के खिलाफ बने माहौल से सत्ताधारी भाजपा भी हुई चौकन्नी

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने हथियारों को पैना कर आजमाना शुरू कर दिया है प्रदेश की राजनीति में जातिवाद की रोटियां  सेक कर राजनीति का थाल सजाने वाले दलों की कोई कमी नहीं रही है समय-समय पर चेहरे तो बदले लेकिन लोकतांत्रिक व्यंजनों में जातिवाद की छौंक ही जाएके का पर्याय बनती रही है | ऐसे में 2022 के लिए भी जातिवादी आकलन शुरू कर पार्टियों ने राजनीतिक बिसात में आंकड़ों के मोहरे से जाना शुरू कर दिया है कभी सोचे तो हंसी आएगी कि ठीक चुनावों से पहले जातिगत शोषण अत्याचार उपेक्षा जैसे शब्द पिज्जा में क्यों तैरने लगते हैं और सरकार सुनते ही हमदर्दी भरे शहद में डूबे यह शब्द अचानक कहां गायब हो जाते हैं |देश और प्रदेश की राजनीति का सिरमौर रही कांग्रेस का मेन वोट बैंक ब्राम्हण और दलित रहा था आज दोनों ही उससे दूर है और पार्टी हाशिए पर है| तो पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद को दोनों वोटरों को साधने की जिम्मेदारी दी गई है |

साथ ही कांग्रेस के लिए मुस्लिम  वोटरों को वापस लाना भी किसी चुनौती से कम नहीं है | ब्राह्मणों की कि वोट बैंक को साधने के लिए कांग्रेस भी परशुराम को सहारा बनाती दिख रही है इसी क्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर परशुराम जयंती पर अवकाश बहाल करने की मांग की है |उधर बसपा सुप्रीमो मायावती 2007 में ब्राम्हण वोटों की मदद से अपने बलबूते पर बहुमत वाली सरकार बनाने में कामयाब हो गई थी | इस बार भी इस रेस में वह सबसे आगे दिख रही हैं | उन्होंने ब्राह्मण वोटों को ध्यान में रखकर संगठन में भारी फेरबदल किए हैं|और विकास दुबे एनकाउंटर प्रकरण में भी उन्होंने ब्राह्मणों के पक्ष में बयान देकर अपना इरादा प्रगट किया था और अब परशुराम की भव्य विशाल प्रतिमा और उनके नाम पर अस्पताल खोलने की बात कहकर उन्होंने दूसरे दलों में अफरा-तफरी मचा दी है | उनके चाणक्य सतीश मिश्रा ब्राह्मणों को साधने में माहिर माने जाते हैं इसीलिए इस बार भी मिशन ब्राह्मण की जिम्मेदारी वही संभाल रहे हैं |समाजवादी पार्टी पर ब्राह्मणों की अनदेखी का आरोप लगता रहा है | लेकिन समाजवादी प्रबुद्ध सभा के अध्यक्ष और वर्तमान विधायक मनोज पांडे के अनुसार

“समाजवादी पार्टी में ब्राह्मणों को सदैव सम्मान मिला है और समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार भी ब्राह्मणों के द्वारा भरपूर आशीर्वाद मिलने के कारण ही वंश की थी |”

जबकि समाजवादी सरकार के कार्यकाल में ही उन्हीं के दल के कई ब्राह्मण नेताओं को हाशिए पर खड़ा कर दिया गया था | फिलहाल पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ब्राम्हण शिरोमणि परशुराम की मूर्ति लगवाने की बात कहकर ब्राह्मणों को लुभाने का प्रयास करते दिख रहे हैं |
भाजपा का काडर वोट बैंक रही ब्राह्मणों में उपजे असंतोष की लहर को लेकर सत्ताधारी भाजपा भी खासी बेचैन है | जिसके चलते प्रदेश भाजपा ने कुछ ब्राम्हण पदाधिकारियों और नेताओं को माहौल सुधारने की जिम्मेदारी दी है | विकास दुबे की पुलिस मुठभेड़ के बाद मौत और हनुमान पांडे की इनकाउंटर ने सरकार की ब्राह्मण विरोधी छवि को हवा दे दी है | ऐसे में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी को भी यह कहना पड़ा था कि “अपराधी सिर्फ अपराधी होता है उसकी कोई जाति या मजहब नहीं होता “और उनकी यह बात सही भी है |इसी क्रम में भाजपा के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक ने कहा है कि सपा बसपा दोनों ही सरकारों में ब्राह्मणों का न सिर्फ उत्पीड़न हुआ बल्कि उन्हें अपमानित करने का भी कोई भी मौका नहीं छोड़ा गया |अब देखना यह होगा कि ब्राह्मणों का सम्मान उनको मिलेगा या नहीं यह तो और बात है फिलहाल उनका वोट किस तरफ जाता है यह सभी राजनीतिक दलों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है|