इलाहाबाद का भव्य अकबर किला ,जानिए इसकी खास बाते

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इलाहाबाद मौर्य और गुप्त साम्राज्य से लेकर मुग़ल साम्राज्य तक समृद्धशाली इतिहास से भरा हुआ है । कुम्भ के महान जन समूह में शामिल होने के अलावा इलाहाबाद में आपको भारतीय धर्म और संस्कृति के बारे में जानने का अवसर मिलेगा । आपको इलाहाबाद के और उसके आस-पास के कई पर्यटन स्थलों को देखने का अवसर मिलेगा । जब आप एक पर्यटक के रूप में यहाँ आयेंगें तब आपको यहाँ आकर असीम संतुष्टि मिलेगी ।

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इलाहाबाद का किला

प्रयाग नगरी में माघ मेला के दौरान संगम तट पर जमकर श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। उसी संगम तट पर मुगल शासक अकबर ने भव्य किले का निमार्ण कराया था। बताया जाता है कि चीनी यात्री ह्वेनसांग ने यहां तालाब में कंकाल देखा था। जिसके बारे में उन्होंने अकबर को बताया था। इसके बाद मुगल बादशाह ने उसी स्थान पर ये किला बना दिया।

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ये किला नक्काशीदार पत्थरों से बना है 

 बताया जाता है कि 644 ईसा पूर्व में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आया था। तब कामकूप तालाब मैं इंसानी नरकंकाल देखकर दुखी हो गया था। उसने अपनी किताब में भी इसका जिक्र किया था। उसके जाने के बाद ही मुगल सम्राट अकबर ने यहां किला बनवाया। इस किले में स्थापत्य कला के साथ ही अपने गर्भ में जहांगीर, अक्षयवट, अशोक स्तंभ व अंग्रेजों की गतिविधियों की तमाम अबूझ कहानियों को भी समेटे हुए है। जिसे जानने की जिज्ञासा इतिहासकारों को भी हमेशा से रही है। ये किला अपनी विशिष्ट बनावट, निर्माण और शिल्पकारिता के लिए जाना जाता है। नक्काशीदार पत्थरों की विशालकाय दीवार से यमुना की लहरे टकराती है। इसके अंदर पातालपुरी में कुल 44 देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जहां लोग आज भी पूजा पाठ करते हैं।

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ये किला 20 हजार मजदूर ने मिलकर बनाया
समकालीन इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा है कि इसकी नींव 1583 में रखी गई। उस समय करीब 45 साल 05 महीने 10 दिनों तक इसका निर्माण कार्य चला था। इसे बनाने में करीब 20 हजार मजदूरों ने काम किया था। किले का कुल क्षेत्रफल 30 हजार वर्ग फुट है। इसके निर्माण में कुल लागत 6 करोड़, 17 लाख, 20 हजार 214 रुपए आई थी। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि किले में निर्माण कार्य 1574 से पहले शुरू हो गया था। अकबर की इच्छा थी कि इलाहाबाद के पास ही एक शहर और सैन्य छावनी बनाई जाए। वह इस किले को अपने बेस के रूप में इस्तेमाल करना चाहता था।

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निर्माण अनियमित नक्शे से हुआ था
नदी की कटान से यहां की भौगोलिक स्थिति स्थिर नहीं थी। जिसकी वजह से इसका नक्शा अनियमित ढंग से तैयार किया गया था। अबुल फजल लिखते हैं, ”अनियमित नक्शे पर किले का निर्माण कराना ही इसकी विशेषता है।”

 ”1583 में अकबर ने एक बार इस किले का निरीक्षण किया था, इसलिए उसे ही किले का निर्माण काल मान लिया जाता है। अकबर इसी स्थान पर 4 किलों के एक समूह का निर्माण करना चाहता था। लेकिन एक ही किले के निर्माण में इतने वर्ष लग गए, तब तक अकबर की मौत हो गई थी।”
”अकबर के साथ आए लोगों ने किले से थोड़ा दूर भवन बनवाया, जिससे एक नए शहर को बसाने में असानी हुई। इस किले को 4 भागों में बांटा गया है।”
”पहला भाग खूबसूरत आवास है, जो फैले हुए उद्यानों के बीच में है। यह भाग बादशाह का आवासीय हिस्सा माना जाता है। दूसरे और तीसरे भाग में अकबर का शाही हरम था और नौकर चाकर की रहने की व्यवस्था थी।”
– ”चौथे भाग में सैनिकों के लिए आवास बनाए गए थे। इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण राजा टोडरमल, सईद खान, मुखलिस खान, राय भरतदीन, प्रयागदास मुंशी की देख-रेख में हुआ था।”

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आर्मी किले में टिकी है 
1773 में इस किले पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया। इससे पहले 1765 में बंगाल के नवाब शुजाउद्दौला के हाथ 50 लाख रुपए में बेच दिया। 1798 में नवाब शाजत अली और अंग्रेजों ने एक संधि कर ली।
उसके बाद किला फिर अंग्रेजों के कब्जे में आ गया। आजादी के बाद सरकार ने किले पर अधिकार किया। किले में पारसी भाषा में एक शिलालेख भी है। जिसमें किले की नींव पड़ने का 1583 दिया है।
किले में एक जनानी महल है, जिसे जहांगीर महल भी कहते हैं। अंग्रेजों ने भी इसे अपने माकूल बनाने के लिए काफी तोड़फोड़ की। इससे किले को काफी क्षति पहुंची थी।
संगम के निकट स्थित इस किले का कुछ ही भाग पर्यटकों के लिए खुला रहता है। बाकी हिस्से का प्रयोग भारतीय सेना करती है। इस किले में 3 बड़ी गैलरी हैं, जहां पर ऊंची मीनारें हैं।
सैलानियों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल देखने की इजाजत है। यहां अक्षय वट के नाम से मशहूर बरगद का एक पुराना पेड़ और पातालपुरी मंदिर भी है।
इसी किले के अंदर एक टकसाल भी था, जिसमें चांदी और तांबे के सिक्के ढाले जाते थे। इस किले में उस समय पानी के जहाज और नाव बनाई जाती थी। जो यमुना नदी से समुद्र तक ले जाई जाती थी।

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 काले पत्थरों का सिंहासन
किले में जब सलीम ने यहां के सूबेदार के रूप में रहना शुरू किया तो उसने अपने लिए काले पत्थरों से एक सिंहासन का निर्माण कराया था। जिसे 1611 में आगरा भेज दिया गया था।
जहांगीर ने किले में मौर्यकालीन एक अशोक स्तंभ को पड़ा पाया था। उसे दोबारा स्थापित कर दिया, 35 फीट लंबे उस स्तंभ पर उसने अपनी संपूर्ण वंशावली खुदवा दी थी।
यह अशोक स्तंभ 273 ईसा पूर्व का है। जिस पर चक्रवर्ती राजा समुद्रगुप्त ने अपनी कीर्ति अंकित कराई थी। इस पर सम्राट अशोक की राजाज्ञाओं व समुद्रगुप्त और जहांगीर की प्रशस्ति भी खुदी हुई है। 1600 से 1603 तक जहांगीर इसी किले में रहा।

किले में कर सकेंगे अक्षयवट का दर्शन

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संगम तट पर स्थित ऐतिहासिक अकबर का किला मंगलवार को पब्लिक के लिए खोल दिया गया। किले में घूमने के साथ ही अक्षयवट के दर्शन व पूजन की  इच्छा रखने वालों के लिए यह बेहतरीन मौका था। आम पब्लिक ने न सिर्फ किले का अंदरूनी हिस्सा देखा बल्कि संगम एरिया के अदभुद सीन को भी देखा। यहां आने वाले दर्जनों लोग ऐसे थे जो पहली बार इस एरिया में भ्रमण के लिए पहुंचे थे। कुंभ मेला शुरू होने पर कुछ महीने इसे बंद कर दिया गया था।

कुंभ में आने वाले पर्यटक और श्रद्घालुओं के लिए खोले गए अकबर के किले में काफी समय के बाद फिर से रौनक लौट आई है। बता दें कि सेना ने इस किले को उसी रूप में लोगों के समाने में लाने की कोशिश की जैसा इसका वास्तविक स्वरूप था। किले की बाहरी व भीतर की दीवार जो कई जगहों पर कमजोर पडऩे लगी थी उसे दुरुस्त करा दिया गया है। इसके अलावा पातालपुरी के ऊपरी हिस्से को नया लुक देने की कोशिश की गई है।

मंगलवार को फोर्ट पहुंचे इस्ट यूपी व एमपी एरिया के जनरल ऑफिसर कमांडिंग मेजर जनरल विश्वम्भर दयाल ने बताया कि ये एतिहासिक धरोहर है। जिसे लोगों के लिए खोला दिया गया है । अभी तक जिन लोगों ने इसे करीब से नहीं देखा था उनके अंदर इसे देखने की काफी जिज्ञासा थी। इसे सेना भी महसूस करती थी। इसे पुराने ढांचे में फिर से तैयार करने में सेना के जवानों को काफी मेहनत करनी पड़ी। जिसकी बदौलत आज यह फिर उसी रूप में लोगों के सामने है। पर्यटकों को अशोक स्तम्भ और सरस्वती कूप देखने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है । सरस्वती कूप को सरस्वती नदी का स्त्रोत माना जाता है ।