आ जाओ हे मुरली वाले गमक उठे फिर से मधुबन

… अरज …

final Gopiyon Ki Virah

आ जाओ हे मुरली वाले गमक उठे फिर से मधुबन,

जब से गये द्वारिका नगरी उखड़ा उखड़ा रहता मन।

पनघट  पर  फैला  सन्नाटा  डगर  डगर नागिन लगती,

साज सिंगार को भूल गईं हैं ब्रिज बाला जोगन लगतीं,

याद में तेरी हे मनमोहन आंसू बन गए नयन का धन,

आ  जाओ हे  मुरली वाले गमक उठे फिर से मधुबन,

जब से गये द्वारिका नगरी उखड़ा उखड़ा रहता मन।

याद आती है  रास की  बेला याद आती प्यारी लीला,

अब गोकुल की गोरी छोरी का मुख्य दिखता है पीला,

मथुरा गोकुल नन्द गांव में छाया रहता दुःख का घन,

आ जाओ हे मुरली वाले  गमक  उठे फिर से मधुबन,

जब से गये द्वारिका  नगरी उखड़ा उखड़ा रहता मन।

आने को कह गए थे मोहन फिर भी तुम न आते हो,

दरस को  तेरी  तरसी  नयना  ऊधव को पठवाते हो,

प्यार को ऊधव समझ न पाते इसी लिए जाती है ठन,

आ जाओ  हे मुरली वाले गमक  उठे फिर से मधुबन,

जब से गये द्वारिका नगरी उखड़ा  उखड़ा रहता मन।

दुष्ट  जनों  ने खेल  रचा   है तेरे  अवतारी  बन  कर,

व्याभचारी हैं नरक मचाए जग में ब्रह्मचारी बन कर।

दूध  में  विष  की  वर्षा करते दूषित करते हैं माखन,

आ जाओ हे  मुरली वाले गमक उठे फिर से मधुबन,

जब से गये द्वारिका नगरी उखड़ा उखड़ा रहता मन।

कलियां खिलने से  डरती हैं फूल  फूल सहमे सहमे,

सुन लो अब अरदास हमारी डर लगता घर में अपने,

अब तो आ जाओ गोवर्धन अरज करें है यह जन जन,

आ जाओ  हे  मुरली  वाले  गमक उठे फिर से मधुबन,

जब  से गये द्वारिका नगरी  उखड़ा उखड़ा रहता मन।

मेहदी अब्बास रिज़वी

  ” मेहदी हललौरी “